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The Family Man – अब रचनात्मक वेब सीरीज़ का समय है

एक समय था दूरदर्शन का! सरकारी चैनल का दूरदर्शन नाम क्यों पड़ा इसके पीछे मेरी काल्पनिक कथा है। अस्सी का वह दशक जब मनोरंजन समाचारपत्र, पुस्तकों, नाटक, रेडियो और सिनेमाघरों से आगे चलकर टीवी तक पहुँच रहा था। कितना सत्य है पता नहीं पर मैंने कभी बचपन में सुना था कि टीवी खरीदने के लिए भी शुरुआती काल में अनुज्ञापत्र लेना होता था।

निःसन्देह किसी ने ऐसे ही मनगढ़ंत कह दिया होगा। उस काल में किसी के घर टीवी होना, आज मध्यम वर्गीय व्यक्ति के पास मर्सिडीज होने के बराबर था। रंगीन टीवी का युग तो बहुत देर से शुरू हुआ, प्रारम्भ में तो अधिकांशतः श्वेत-श्याम टीवी ही आते थे। गाँव में किसी इक्के-दुक्के के पास और शहरों में भी हर संकुल में किसी-किसी के पास ही टीवी होता था।

उस समय जब छायागीत, रामायण या महाभारत धारावाहिक हो या क्रिकेट मैच हो तो दूर दूर से पड़ोसी आते थे देखने के लिए, शायद इसलिए इसका नाम पड़ गया दूरदर्शन। हालाँकि यह मेरे मन की काल्पनिक कथा है और इसमें रत्ती भर सच नहीं है। शनैः शनैः टीवी के मनोरंजन में अद्भुत विकास हुआ। उम्मीद है “विकास” शब्द से किसी को आपत्ति ना हो! तो मात्र दो-तीन घंटों तक चलने वाला दूरदर्शन चौबीसों घंटे हो गया और चैनलों की तो बाढ़ आ गई। सन 2001 में आए धारावाहिक जिसे, “कौन बनेगा करोड़पति”, “क्योंकि साँस भी कभी बहू थी” आदि। उसके बाद शुरू हुआ धारावाहिकों के कभी ना समाप्त होने वाला और एक जैसी उबाऊ कहानी, पटकथा, निर्देशन, अभिनय का युग। कहीं कोई रचनात्मकता नहीं। परंतु साथ ही कुछ अच्छी फिल्मों के आने से और कहानियों और अभिनय में वास्तविक जीवन का रंग लगने से प्रतिभा को स्थान मिला। संवाद अधिक वास्तविक हो गए और आज सभी उम्र और वर्ग के दर्शकों के लिए सभी प्रकार की फिल्में और धारावाहिक हैं।

मनोरंजन जगत में क्रांति तो आयी ओटीटी प्लेटफॉर्म के कारण। इनकी कहानी, निर्देशन, अभिनय, संवाद की बात ही कुछ और है। पहले निर्माता मदारी था और दर्शक बंदर। टीवी पर वही देखना पड़ता जो वे दिखाते परंतु ओटीटी प्लेटफॉर्म जैसे नेटफ्लिक्स, अमेज़ोन जैसे दिग्गजों के कारण वस्तुस्थिति बदली है। अब दर्शक बंदर नहीं है, अब वह स्वतंत्र है उसकी पसंद की फिल्म या वेब सीरीज़ देखने के लिए। हालाँकि, बहुत-सी वेब सीरीज़ में कुछ अधिक ही नंगापन, गाली-गलौज, हिंसा दिखाई जाती है परंतु आजकल बहुत-सी बातें आम जीवन में होती है, शायद इसलिए लोगों में वेब सीरीज़ बहुत पसंद की जाती है।

कल ही अमेज़ोन पर आयी एक वेब सीरीज़ है “द फॅमिली मैन” जिसमें मनोज वाजपेयी मुख्य भूमिका में है। वेब सीरीज़ की पटकथा भारत के जासूसी तंत्र, आतंकवाद और अकारण फैलाई जा रही राजनैतिक हिंसा के इर्द-गिर्द घूमती है। इसकी सबसे अच्छी बात यह है कि दर्शकों को आकर्षित करने के लिए अकारण नंगापन नहीं दर्शाया गया है। हालाँकि प्रतिदिन के जीवन में हमारे हाव-भाव, मानसिकता और भाषा का खुलकर उपयोग किया गया है। मनोज वाजपेयी के अभिनय के लिए मुझे कुछ लिखने के अवश्यकता ही नहीं है। मनोज तो किरदार को घोलकर पी जाते हैं। अन्य कलाकारों ने भी बहुत अच्छा योगदान दिया है। “द फॅमिली मैन” एक ऐसे गुप्त जासूस की कहानी है जो हॉलीवुड का सुपरमैन नहीं है कि जिसके साथ सब अच्छा ही हो। वास्तविक जीवन की तरह इससे भी कुछ भूल हो सकती है। इसके जीवन में भी बहुत सी निजी समस्याएँ हो सकती हैं। दस भागों की यह वेब सीरीज़ अंतिम भाग तक दर्शकों को बांधे रखती है। वेब सीरीज़ को आप हिन्दी फोर्स्ड़ नैरेटीव (एफ एन) या क्लोज्ड कैप्शन के साथ देख सकते हैं बेहतर अनुभव के लिए।

Karan Nimbark

लेखक करन निम्बार्क की जन्मभूमि व कर्मभूमि मुंबई है । वर्ष २००४ में मुंबई विश्वविद्यालय से वाणिज्य में प्रथम श्रेणी में स्नातक किया हैं । करन को हिन्दी के साथ अंग्रेजी, मराठी, गुजराती, मारवाड़ी भाषाओं का भी ज्ञान हैं । इन्हें लेखन में बचपन से ही रूचि रही है । अब तक कुछ समाचार पत्रों, ऑनलाइन समाचार साईट ( अजेय भारत, द फेस ऑफ़ इंडिया ) के लिए कई कविताएँ, लेख, समीक्षा लिख चुके हैं । कुछ विज्ञापन फिल्में व कुछ लघु फिल्में भी बनाई हैं । मंच से भी जुड़े हैं । सामाजिक कार्यों में भी समयानुसार यथाशक्ति भाग लेते रहते हैं । पहला हिन्दी उपन्यास “नायिका” सह लेखक के रूप में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित श्री अतनु बिस्वास के साथ लिखा था और उनका दूसरा उपन्यास जो कि नारी प्रधान है और जिसे भारत के दिग्गज लेखकों और कवियों ने सराहा है, शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है । वर्तमान में भारत के अग्रणी डिजिटल मीडिया संस्थान में मुख्य हिन्दी अनुवादक के रूप में कार्यरत हैं और अब तक कई अँग्रेजी व हिन्दी फिल्मों, वेब सीरीज़, म्यूजिक विडियो के लिए सबटाइटल, एफएन, क्लोज्ड कैप्शन लिख चुके हैं ।

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